Revenge love
एक शाही शादी – जहाँ हर कोना बयां करता है रॉयल्टी
शहर के सबसे बड़े और आलीशान महलनुमा बंगले को दुल्हन की तरह सजाया गया था। बेशकीमती रेशमी परदे, झिलमिलाती क्रिस्टल लाइट्स, और विदेशी फूलों की महक हर मेहमान का दिल जीत रही थी।
बंगले के मुख्य द्वार पर बना फूलों का गेट—सफ़ेद गुलाब, ट्यूलिप और ऑर्चिड्स से सजाया गया था, जिसके बीच सुनहरी रोशनी झिलमिला रही थी। जैसे ही कोई मेहमान अंदर आता, फाउंटेन से निकलती हल्की सुगंधित भाप उसे एक दूसरी ही दुनिया में ले जाती।
गार्डन में बना मंडप किसी राजमहल से कम नहीं था—चारों ओर सुनहरी मीनाकारी के खंभे, ऊपर से झूलते रेशमी पर्दे, और बीचों-बीच जड़े असली चाँदी के बर्तन, जिसमें पवित्र अग्नि जलनी थी।
हॉल का नज़ारा:
बड़ा सा बॉलरूम जिसमें झूमर इतने विशाल कि छत को छूते हुए लग रहे थे। दीवारों पर पुरानी रॉयल पेंटिंग्स, फूलों की मोटी-मोटी लड़ी, और ज़मीन पर फैली मखमली कारपेट। खाने का सेक्शन तो जैसे किसी इंटरनेशनल फूड फेस्ट का हिस्सा था—इटैलियन, थाई, मुग़लई, राजस्थानी और बंगाली—हर स्वाद का इंतज़ाम।
दुल्हन का कमरा:
सजे हुए शीशों की दीवारों वाला कमरा, जहाँ दृष्टि को पारंपरिक लाल लहंगे में सजाया जा रहा था। उसका लहंगा मशहूर डिज़ाइनर का था, जिसकी कढ़ाई में असली सोने और चाँदी के धागे इस्तेमाल किए गए थे। गहने–मोतियों और कुंदन से बने हुए–इतने भारी कि चलते समय किसी रानी की तरह प्रतीत हो रही थी।
महमानों की एंट्री:
मेहमानों के स्वागत के लिए बैंड-बाजा, शहनाई की मधुर धुन, और सफेद पोशाक में सजे सेवक, जो गुलाब जल छिड़कते हुए सभी को अंदर ले जा रहे थे।
कमरे में ढेर सारे लहंगे बिखरे हुए थे — हर एक अपनी जगह पर चमक रहा था। ज़री, कढ़ाई, मोती, मखमल, रेशम... हर लहंगा जैसे अपनी कहानी कह रहा हो। सृष्टि बिस्तर पर बैठी कभी एक लहंगे को देखती, कभी दूसरे को उठाकर आईने के सामने रखती।
"मुझे तो सारे ही पसंद आ रहे हैं!" सृष्टि मासूमियत से मुस्कुराते हुए बोली। "पापा, आपने इतनी चॉइस दे दी है कि अब समझ ही नहीं पा रही हूं कि कौन-सा पहनूं?"
अभिनव जिंदल, एक सफल उद्योगपति और एक स्नेही पिता, अपनी बेटी को देखकर मुस्कुराए।
"बेटा सृष्टि, अब भाई हमारी बेटी की शादी है। कल हम कोई कमी छोड़ सकते हैं क्या? और फिर शादी अर्जुन शेखावत से हो रही है — टॉप लेवल बिज़नेसमैन है। उसके बराबरी की दुल्हन लगनी चाहिए ना। हमारे बच्चे हमसे कम हैं क्या?"
सृष्टि थोड़ी शरमा कर बोली, "पर पापा, मैं कौन-सा पहनूं?"
"कोई भी पहन ले, बेटा। सारे तेरे ऊपर अच्छे लगेंगे। तू ही तो हमारी राजकुमारी है।"
यह थी सृष्टि जिंदल, अभिनव जिंदल की बड़ी बेटी — उम्र 25 साल। गोरी, सीधी-सादी, और सादगी से भरी हुई। आज उसके सपनों का राजकुमार उससे ब्याह रचाने आ रहा था। उसके चेहरे पर खुशी की चमक थी। कभी लहंगों की तरफ देखती, तो कभी शीशे में खुद को देखकर मुस्कुरा उठती।
मन ही मन सोचती: "अर्जुन... आज कितने सालों बाद हमारा सपना पूरा होने जा रहा है। मैंने इस पल का कितनी बेसब्री से इंतज़ार किया है..."
उसी समय वॉशरूम से पानी गिरने की आवाज़ आती है।
सृष्टि मुस्कुराते हुए कहती है, "पक्का ये दिव्या ही होगी। चलती-फिरती तूफान है वो! कभी-कभी तो सोचती हूं मम्मी ने क्या खाया था उसके समय। ही बंदी कभी सीधी चल ही नहीं सकती।"
तभी ज़ोर से आवाज़ आती है—"अरे दीदी, बस कर जाओ! वैसे भी अब तो आप इस घर से जा रही हो। घर मेरा है और पापा भी मेरे। तो अब उनसे मेरी शिकायतें करना बंद करो!"
सबका ध्यान दरवाज़े की ओर जाता है। वहां एक लड़की खड़ी थी — तेज़ चाल, मासूम मगर शरारती मुस्कान, और आँखों में बला की चमक।
ये थी दिव्या जिंदल, अभिनव जिंदल की छोटी बेटी — उम्र 19 साल। जितनी प्यारी, उतनी ही ज़ुबान की तेज़। मुंहफट, लड़ाकू और दिल से बेहद साफ।
दिव्या अंदर आते ही बोली, "मैं आपके लिए बहुत महंगा तोहफा लेने गई थी, दीदी!"
सृष्टि हँसते हुए: "अच्छा? ऐसा भी क्या लेने गई थी?"
दिव्या मुस्कराते हुए कहती है, "रुको... अभी दिखाती हूं!"
"रामू काका!" — उसने ज़ोर से पुकारा।
रामू काका एक थाल लेकर अंदर आए, जिस पर एक सुंदर कपड़ा पड़ा हुआ था।
दिव्या नाटकिया अंदाज़ में बोली, "अब आपकी आंखें फटी की फटी रह जाएंगी! तो संभालकर बैठिए—अपनी आंखें और दिल दोनों!"
कपड़ा हटाते ही थाल में एक बेहद खूबसूरत, पारंपरिक लहंगा था।
"ये... मां का लहंगा है।" दिव्या धीमे से बोली। "मम्मी ने अपनी शादी में पहना था। बहुत ढूंढने के बाद मुझे ये मिला। दी, आज आप यही पहनोगी।"
सृष्टि लहंगे को देखते ही भावुक हो गई। उसकी आंखों में आंसू आ गए। मां की यादें जैसे सामने आ खड़ी हुईं।
अभिनव जी उसकी पीठ सहलाते हुए बोले, "बेटा, तुम्हारी मां का आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ है। खुद को कभी अकेला मत समझना। और आज का दिन… बहुत खास है। तुम्हें तुम्हारे प्यार अर्जुन से शादी करने को मिल रहा है, 12 सालों का प्यार है तुम्हारा। ऐसे रोते नहीं हैं, हँसते हैं!"
सृष्टि आंसू पोंछते हुए बोली, "हाँ पापा, मैं सिर्फ रंग नहीं, आज अपनी शादी में खूब नाचूंगी। आपने कभी मुझे मां की कमी महसूस नहीं होने दी… थैंक यू सो मच, पापा!"
वह झुक कर अपने पापा को गले लगा लेती है।
दिव्या धीरे से बोली, "ये क्या बात हुई? पापा आप दी को गले लगा रहे हैं और मुझे भूल गए? अब उनके जाने के बाद घर में आपका ख्याल रखने वाली मैं हूं! चलिए, आप पार्शियलिटी कर लीजिए, मैं भी बताती हूं!"
फिर वह भी दौड़ कर उनके गले लग जाती है।
तीनों एक-दूसरे से लिपटे हुए, थोड़ी देर के लिए ज़िंदगी की रफ़्तार से अलग एक इमोशनल पल में डूब जाते हैं।
तभी पीछे से आवाज़ आती है—
"हो गया फैमिली ड्रामा? अब ज़रा तैयार भी हो जाओ!"
यह थीं टुनटुन बुआ।
दिव्या धीरे से बुदबुदाई, "लो आ गई मुसीबत... अब तेरा क्या होगा, भगवान ही जाने। मैं तो चली!"
और चुपचाप बुआ के बगल से निकल जाती है।
टुनटुन बुआ ताना मारती हैं, "भाई साहब! इसके भी हाथ पीले कर दो। लगे हाथ इसको भी विदा कर दीजिए, एक मुसीबत कम हो जाएगी!"
सृष्टि आगे बढ़कर उनके पैर छूती है।
टुनटुन बुआ मुस्कराकर आशीर्वाद देती हैं, "सदा सुहागन रहो! आज तुम अपने प्यार के साथ नई ज़िंदगी शुरू कर रही हो… मैं बहुत खुश हूं।"
Kajal Shukla"eyeliner "
09-Jul-2025 09:32 AM
nice 👏
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